भुखमरी से मरेगा China, खाद्य और औद्योगिक संकट मे चीन, 1962 जैसे हालात

India China News हम सभी भलिभांति जानते है कि भारत और चीन के मध्य तनाव एक बार फिर चरम सिमा पर है। दरअसल इस वक्त चीन घरेलू स्तर पर खाद्य और औद्योगिक (China in food and industrial crisis like 1962) संकट से बुरी तरह घिरा हुआ है। चीन अपनी कमजोरी को आक्रामकता से ढकने की कोशिश में जुटा है।

चीन से इन तनातनी को लेकर कुछ वक्त पहले ही भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था। कि 1962 के बाद यह सबसे गंभीर स्थिति है। अगर 1962 (Things like China 1962 in food and industrial crisis) की स्थिति से तुलना कि जाए तो उस समय भी ऐसी ही परिस्थितियां बनी थीं। चीन ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ा था। यह बात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा चलाए जा रहे दो कार्यक्रमों से स्पष्ट हो जाती है।

चीन के सामने 1962 जैसे हालात

आपको बता दे कि 1962 में चीन के नेता माओत्से तुंग को चुनौतियों का सामना करना पडा था। ग्रेट लीप फॉरवर्ड कार्यक्रम का विरोध करने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर माओ ने शिकंजा कसा। उस वक्त चीन के नेता माओ ने भारत को एक आसान लक्ष्य समझा। आज भी चीन समान परिस्थितियों से गुजर रहा है। जहां औद्योगिक और खाद्य  संकट उसके सामने हैं।

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सुत्रो के मुताबिक China के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले कुछ सप्ताह में दो अभियान शुरू किए हैं। जिनमें एक घरेलू खपत बढ़ाने से जुड़ा है, तो दूसरा ‘क्लीन प्लेट ड्राइव’ है। घरेलू खपत बढ़ाने के अभियान से साफ है कि चीन की अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है। वहीं दूसरा अभियान बताता है कि  चीन खाद्य संकट से जूझ रहा है।

कमजोरी को ढकने का हुनर जानता है चीन

सुचना के अनुसार, यह वह समय है। जब शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के कारण खजाने से बहुत अधिक धनराशि निकलने से कम्युनिस्ट पार्टी में मामला गरमाया हुआ है। जिनपिंग ने भी अपने विरोधियों को चीन के नेता माओत्से तुंग के ग्रेट लीप फारवर्ड कार्यक्रम के समय दिए गए जवाब की ही तरह बेरहमी से जवाब दिया है।

माओ ने अपना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 1958 में शुरू किया था। जिसका लक्ष्य 15 सालों में ब्रिटेन के औद्योगिक और खाद्य उत्पादन को मात देना और चीन में अनाज क्रांति लाना था। आपको बतादे कि, चीन के प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर के पीछे भट्ठी लगाकर स्टील का उत्पादन करना पड़ता था। साथ ही कृषि उत्पादन को केंद्रीय अन्न भंडार में भेजा जाने लगा। परिणामस्वरूप, गांवों में खाद्यान्न की कमी हो गई।

China food and industrial crisis

अनुमान है कि 1962 के युद्ध के चलते 2-3 सालों में ही चीन में भूख से 4 से 5 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। माओ ने जिस तरह से अपने विचार का विरोध करने वालों को ‘शुद्ध’ किया, उसी तरह से शी जिनपिंग ने भ्रष्टाचार से लड़ाई के नाम पर अपने विरोधियों को निपटा दिया। स्वीडन के रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ बर्टिल लिंटनर ने अपनी किताब चाइनीज इंडिया वार में लिखा है, कि पार्टी के भीतर माओ की स्थिति से समझौता कर लिया गया और माओ ने उग्र राष्ट्रवाद को त्याग दिया। ओर इसके साथ ही चीनी राष्ट्रवाद को बढ़ाते हुए, चीन भारत को नरम लक्ष्य मानते हुए आक्रामक रुख अपनाया गया।

चीन आर्थिक सकंट पर निराश

एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में औसत प्रति व्यक्ति खपत में लगभग 6 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी खरीद के साथ ही कुल खुदरा बिक्री में 11.5 फीसद की गिरावट दर्ज है। अब शी जिनपिंग के लिए यह चिंताजनक है कि वह चीन विरोधी रुख को अपनी अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती के रूप में देखते हैं। रिपोर्ट का कहना है कि एक औसत चीनी कम खर्च कर रहा है और रोजगार की स्थिति भी ठीक नहीं है।

भारत पर चीन का निशाना

अब चीन के सोशल मीडिया मंच पर खाद्य और औद्योगिकसंकट को लेकर बात की जा रही है। कुछ विशेषज्ञों का आरोप है कि शी जिनपिंग की गलत नीतियों के कारण शहरों में कमाई नहीं हो पा रही है। ऐसे में चीन के लोग शहरों से गांवों की ओर पलायन कर रहे हैं। COVID19 संकट का नौकरियों पर बहुत प्रभाव पडा है।

मई में शी जिनपिंग ने चीनी (China) सेना से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा था, लेकिन यह साफ नहीं है कि चीन किस देश के साथ युद्ध की तैयारी में जुटा है। चीन ने कमांडर-स्तरीय और कूटनीतिक वार्ता के वादों का भी सम्मान नहीं किया है। साथ ही भारत के साथ लगती सीमा के नजदीक निर्माण कार्यों में जुटा है। अमेरिका सहित अन्य देशों से भी उसकी गरमाहट जारी है।


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