अयोध्या कांड विवाद: दोस्तो आयोध्या का फैसला आ गया है। और दोनो पक्ष में बिना किसी भेदभाव के आया है। आज हम आपको आयोध्या कांड कि पुरी कहानी बताएंगे कि असल में राम मंदिर मामला क्या है। तो चलिए आरम्भ करते है अयोध्या कांड …..

अयोध्या कांड: राम मंदिर, मस्जिद विवाद
आयोध्या के रामकोट मुहल्ले में एक टीले पर आज से लगभग पाँच सौ साल पहले वर्ष 1528 से 1530 में बनी मस्जिद पर लगे शिलालेख और सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक़ यह मस्जिद हमलावर मुग़ल बादशाह बाबर के हुक्म पर उसके गवर्नर मीर बाक़ी ने बनवाई थी।
हालाकी इस मस्जिद वाली भुमि का कोई रिकार्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाक़ी ने यह ज़मीन कैसे हासिल की और मस्जिद से पहले वहाँ राम मंदिर था या नही। उस समय मस्जिद के सम्पुर्ण देख रेख, रख-रखाव के लिए मुग़ल काल, नवाबी और फिर ब्रिटिश शासन में वक़्फ़ के ज़रिए एक निश्चित रक़म मिलती थी।
ऐसा कहा और सुना भी है कि इस मस्जिद को लेकर स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों में कई बार भिषण संघर्ष भी हुए।
कई ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा है कि 1855 में नवाबी शासन के दौरान मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद पर जमा होकर कुछ मीटर दूर अयोध्या के सबसे प्रतिष्ठित एव् प्राचीन हनुमानगढ़ी मंदिर पर क़ब्ज़े के लिए धोके से धावा बोला दिया था। क्योकि उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्जिद तोड़कर बनायी गई थी।
इस भयानक और ख़ूनी संघर्ष में हिंदू ने हमलावरों को हनुमान गढ़ी से बहुत खदेडा जो भागकर बाबरी मस्जिद परिसर में छिपे मगर वहाँ भी कई मुस्लिम हमलावर क़त्ल कर दिए गए, जो वहीं कब्रिस्तान में दफ़न हुए।
आज भी कई विदेशी यात्रियों के संस्मरणों और पुस्तकों में वर्णित है कि हिंदू समुदाय प्राचीनकाल से ही से इस मस्जिद के आसपास की जगह को राम जन्मभुमि मानते हुए पूजा और परिक्रमा करता था।
आपको बतादे कि 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद नवाबी शासन खत्म होने के बाद ब्रिटिश क़ानून, शासन और न्याय व्यवस्था लागू हुई। माना जाता है कि इसी आधार पर हिंदुओं ने मस्जिद के बाहरी हिस्से पर क़ब्ज़ा करके चबूतरा बना लिया और भजन-पूजा शुरू कर दी, जिसको लेकर वहाँ झगड़े होते रहते थे।
आपको बतादे कि बाबरी मस्जिद के एक कर्मचारी मौलवी मोहम्मद असग़र ने 30 नवंबर 1858 को लिखित शिकायत में कहा था कि हिंदू वैरागियों ने मस्जिद से सटाकर एक चबूतरा बना लिया है और मस्जिद की दीवारों पर राम-राम लिख दिया है जो मुसलिम के खिलाफ है।
इस मामले कि शांति व्यवस्था क़ायम करने के लिए प्रशासन ने चबूतरे और मस्जिद के बीच दीवार बना दी लेकिन मुख्य दरवाज़ा एक ही रहा। इस के बाद भी मुसलमानों की तरफ़ से लगातार लिखित शिकायतें होती रहीं कि हिंदू वहाँ नमाज़ में बाधक बन रहे हैं।
सर्व्प्रथम जानकरी देदे कि अप्रैल 1883 में निर्मोही अखाड़ा ने डिप्टी कमिश्नर फ़ैज़ाबाद को अपील देकर मंदिर बनाने की मांग कि थी, मगर मुस्लिम समुदाय की आपत्ति एव्म विरोध पर अर्ज़ी खारिज हो गई। इसी बीच मई 1883 में मुंशी रामलाल और राममुरारी राय बहादुर का लाहौर निवासी कारिंदा गुरमुख सिंह पंजाबी वहाँ मंदिर निर्माण सामग्री लेकर आ गया और प्रशासन से मंदिर बनाने की अनुमति माँगी, मगर डिप्टी कमिश्नर ने वहाँ से मंदिर निर्माण सामग्री हटवा दिए थे।
आयोध्या कांड का कोर्ट में पहला मुक़दमा 29 जनवरी 1885
आयोध्या कांड का पहला मुकदमा निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने उस चबूतरे को राम जन्म स्थान बताते हुए भारत सरकार और मोहम्मद असग़र के ख़िलाफ़ सिविल कोर्ट में पहला मुक़दमा 29 जनवरी 1885 को दायर किया था। उस मुक़दमे में 17X21 फ़ीट लम्बे-चौड़े चबूतरे को जन्मस्थान बताया गया और वहीं पर मंदिर बनाने की अनुमति माँगी गई, भगवान राम और पुजारी प्राक्रतिक समस्या से निजात पा सके एव्म पुराने मंदिर कि मंजुरी दिला सके।
इसमें दावा किया गया कि वह इस ज़मीन के मालिक हैं और उनका इस समय मौक़े पर क़ब्ज़ा भी है। परंतु विपक्ष के सरकारी वक़ील ने जवाब में कहा कि वादी को चबूतरे से हटाया नहीं गया है, इसलिए मुक़दमे का कोई कारण नहीं बनता। साथ हि साथ मोहम्मद असग़र ने अपनी आपत्ति जताते हुए कहा कि प्रशासन बार-बार मंदिर बनाने से रोक भी कर चुका है।
उस समय के जज पंडित हरिकिशन ने राम जन्मस्थान वाली जगह पर मुआइना किया और पाया कि चबूतरे पर भगवान राम के चरण बने हैं और मूर्ति भी है, और बकाइदा जिनकी पूजा होती थी। इसके पहले हिंदू और मुस्लिम दोनों यहाँ पूजा और नमाज़ पढ़ते थे, यह दीवार सिर्फ झगड़ा रोकने के लिए सरकारी आदेश पर खड़ी की गई। हालाकी जज ने मस्जिद की दीवार के बाहर चबूतरे और ज़मीन पर हिंदू पक्ष का क़ब्ज़ा भी सही पाया।
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यह सब समझने के बाद जज पंडित हरिकिशन ने यह अपने फसले में लिखा कि राम चबूतरा और मस्जिद बिलकुल अग़ल-बग़ल हैं, दोनों के रास्ते एक हैं और यदि मंदिर बनेगा तो शंख, घंटे घडियाल आदि बजेंगे, जिससे दोनों पक्षो में झगड़े होंने कि सम्भावना रहेगी और लोग मारे जाएँगे इसीलिए प्रशासन ने मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी। पहला मुक़दमा निर्मोही अखाड़ा साल भर में हारा|
पंडित हरिकिशन जज ने यह लिखते हुए निर्मोही अखाड़ा के महंत को चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया कि ऐसा करना भविष्य में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगों जैसा माहौल बन सकता है। इस तरह मस्जिद के बाहरी परिसर में मंदिर बनाने का पहला मुक़दमा निर्मोही अखाड़ा साल भर में हार गया।
उस समय के District Judge चैमियर की कोर्ट में अर्जी दाख़िल हुई। मौक़ा मुआयना के बाद उन्होंने तीन महीने के अंदर फ़ैसला सुना दिया। फ़ैसले में District Judge ने कहा, “हिंदू जिस जगह को पवित्र मानते हैं वहां मस्जिद बनाना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन चूँकि यह घटना आज से लगभग 356 साल पुर्व की है इसलिए अब इस शिकायत का समाधान करने के लिए बहुत देर हो गई है।”
जज के मुताबिक़, “इसी चबूतरे को राम चंद्र का जन्मस्थान कहा जाता है”
परंतु जज ने अपनी राय में यह भी कहा कि मौजूदा हालत में बदलाव से कोई लाभ होने के बजाय मतभेद और दन्गे-फसात ही होगा। चैमियर ने सब जज हरि किशन के जजमेंट का यह आकलन अनावश्यक कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि चबूतरे पर पुराने समय से हिंदुओं का क़ब्ज़ा है और उसके स्वामित्व पर कोई सवाल नहीं उठ सकता।
इसके बाद में निर्मोही अखाड़ा ने अवध के जुडिशियल कमिश्नर डब्लू यंग की अदालत में दूसरी अपील की। जुडिशियल कमिश्नर यंग ने 1 नवंबर 1886 को अपने जजमेंट में लिखा कि “अत्याचारी बाबर ने साढ़े तीन सौ साल पहले जान-बूझकर ऐसे पवित्र स्थान पर मस्जिद बनाई जिसे हिंदू रामचंद्र का जन्मस्थान मानते हैं| इस समय हिंदुओं को वहाँ जाने का सीमित अधिकार मिला है और वे सीता-रसोई और रामचंद्र की जन्मभूमि पर मंदिर बनाकर अपना दायरा बढ़ाना चाहते हैं”।
साथ हि साथ जजमेंट में यह भी कह दिया गया कि रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे हिंदू पक्ष का किसी तरह का स्वामित्व दिखे।
इस प्रकार इन तीनों अदालतों ने अपने फ़ैसले में अयोध्या मामले के बारे में हिंदुओं की आस्था, मान्यता और जनश्रुति का उल्लेख तो किया लेकिन अपने फ़ैसले का आधार उन रिकार्ड पर उपलब्ध सबूतों को बनाया और शांति व्यवस्था को बरकरार रखने पर ज्याद ध्यान दिया।
बाद में क्यो हुए देंगे सन 1934 में बक़रीद वाले दिन समिप के एक गाँव में गोहत्या को लेकर दंगा शुरु हो गए। जिसमें बाबरी मस्जिद को बहुत ज्याद क्षति पहुंची लेकिन ब्रिटिश सरकार ने तत्काल इसकी मरम्मत भी करवा दी।